Read in App


• Fri, 26 Feb 2021 5:05 pm IST


'पत्रकारिता’ का गिरता स्तर


हम सभी जानते हैं कि पत्रकारिता क्या है और हम पत्रकारिता की पावर को भी जानते हैं । जैसा कि यह लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है लोगों का पत्रकारिता और पत्रकार के प्रति विश्वास भी उतना ही है ।  एक पत्रकार वह व्यक्ति होता है जो दर्शकों को सूचना देता है और वह जो आम जनता तक समाचार पहुंचाता है । लेकिन आज की पत्रकारिता को ऐसी चीजों ने बदल दिया है जो समाचार मूल्यों के बारे में कम है और चीखने चिल्लाने के बारे मे ज्यादा नजर आती है । यह लोगो की धारणा को बदलने का भी काम करती है । वहीं इन सब के बाद अगर कुछ बच जाता है , तो आज की पत्रकारिता ‘Advertisement’ यानी विज्ञापन के पीछे भागती है । हालांकि विज्ञापन से मिलता पैसा एक मीडिया कंपनी को चलाने के लिए जरुरी है । लेकिन इस विज्ञापन की दौड़ में एक पत्रकार अपने मूल्य सिद्धांतो को भूल जाता है । 

वहीं शुरुआती दौर में चला चरण जहां समाचार प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति मीडिया से जुड़े कुछ मुल्यों का पालन करता था । वह सच को दिखाने में विश्वास रखता था । भले वो सच रुलिंग पार्टी से क्यूं ना जुड़ा हो ।तब के जमाने में लोग एक धार्मिक ग्रंथ की तरह ‘पत्रकारिता’ में विश्वास रखते थे । ऐसा इसलिए क्योंकि अगर एक पत्रकार किसी भी माध्यम के जरिए ये बता देता था कि आज बारिश होने वाली तो लोग अपने घरो से छाता लेकर निकला करते थे । 

लेकिन अब वैसी पत्रकारिता बहुत पीछे छूट गई है । अब वह मूल्य कहीं खो गए है । अब वह बारिश का मौसम नहीं आता ,  पत्रकारिता की दुनिया में अब एक ही मौसम आता है , और वो मौसम पैसो का मौसम होता है । वहीं कुछ मीडिया चैनल ऐसे भी है , जो आज भी पत्रकारिता के मुल्यों का पालन करते है , लेकिन ऐसे लोगो की गिनती कम है , इसलिए उन पत्रकारो की चर्चा भी कम है । 

लोगो की भलाई के लिए सूचना प्रस्तुत करना एक पत्रकार का मुख्य उद्देश्य होता है । लेकिन अब यह उद्देश्य पूरी तरह बदल चुका है । शोर शराबे में सिमती पत्रकारिता अब TRPS की रेस में हिस्सा लेती नजर आती है । वर्तमान की बात करें तो एक नेशनल एंकर की चिल्लाती आवाज ही उसकी USP  बन गई । कभी कभी तो ऐसा लगता मानो हम  न्यूज़ चैनल नहीं बल्कि एक एक्शन मूवी देख रहे हो । 

वहीं टी.वी एंकर की आवाज हम लोगो के लिए सिर दर्द बन गई है । टीवी चैनल अब युद्ध क्षेत्र की तरह प्रतीत होता है और समाचार कक्ष युध्द भूमि की तरह । 

एक आम आदमी जो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर  आंख मूंदकर विश्वास करता है । वह पत्रकारिता की इस प्रथा को पूर्ण रुप से नहीं जानता है । वर्तमान स्थिति के अनुसार पत्रकार सेल्समैन बन गए हैं क्योंकि वह समाचार दिखाते नहीं हैं बल्कि बेचते हैं और वह अपने उत्पाद यानी न्यूज को बेचने में काफी सक्षम  नजर आते हैं  । लेकिन सवाल यह है कि कब तक यह जारी रहेगा ? कब तक आप आम जनता को गुमराह करते रहेंगे और कब तक जनता अनजान और अज्ञानी बनी रहेगी ?  मीडिया को अपने इस तथ्य को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि किसी दिन आम जनता उस किनारे पर पहुंच जाएगी जहां उन्हें समाचार की समझ और समाचार एजेंडा के बीच का अंतर समझ आ जाएगा

सौजन्य- निशा रावत