कल्पना कीजिए किसी ऐसी सुबह की, जिसका कोई रंग न हो। जब आसमान नीला न दिखे और पेड़-पौधे हरे। जब फूलों का रंग उड़ चुका हो और सड़कों का भी। कौवा काला नजर न आए और गाय सफेद। ऐसी कोई कल्पना ही रंग उड़ा देती है चेहरे का।
रंग ताकतवर हैं। ये पहचान देते हैं। पहचान बदल सकते हैं और पहचान छीन सकते हैं। देखा जाए तो दुनिया में किसी चीज का अपना कोई रंग नहीं होता। फिर भी वह किसी न किसी रंग में रंगा है और वह रंग उसके कैरेक्टर से जुड़ा है। विज्ञान के जरिये इसे साबित किया था आइजैक न्यूटन ने। उन्होंने घुप्प अंधेरे कमरे में एक सुराख से रोशनी भेजी। वह रोशनी जब कमरे में रखे प्रिज्म से होकर गुजरी तो रंगों की नई दुनिया खुल गई। न्यूटन ने साबित किया कि जीवन के लिए जरूरी प्रकाश में ही निहित हैं रंग। सूरज जो रोशनी हम पर बरसा रहा और जिसकी गर्माहट के तले धरती पर जिंदगी आबाद है, वह बस दिखती ही रंगहीन है। असल में उसमें सारे रंग घुले हुए हैं। दोनों को अलग नहीं किया जा सकता।
अजीज नबील का शेर है, ‘सांस लेता हुआ हर रंग नजर आएगा, तुम किसी रोज मिरे रंग में आओ तो सही’। लाल, गुलाबी, पीला या काला – मेरा वह रंग कोई भी हो सकता है। रंगों की अपनी कोई भाषा नहीं। फिर भी ये कुछ कहते हैं, जो सीधे हमसे और आपसे जुड़ा है। लाल रंग जोश देता है आगे बढ़ने का। यह प्यार है, जुनून है, लेकिन आगाह भी करता है। गुलाबी है अहसास जगाने वाला, खास अहसास दिलाने वाला।
पीले में है सूरज का तेज। संदेह से उबारने वाला। ठंड में सुकून देनी वाली गुनगुनी धूप की तरह खुशनुमा। काला कुछ लौटाता नहीं और सफेद कुछ छिपाता नहीं। हरा है नई शुरुआत के लिए। प्रशंसा के लिए, संपन्नता के लिए। यह रंग है सृजन का। प्रकृति ने तभी तो इसे अपना बना लिया। जमीन फोड़कर निकलता अंकुर इसी रंग में तो रंगा होता है। खेत भी अच्छे तभी लगते हैं, जब उन पर हरियाली चढ़ी हो। नीला रंग खोलता है अनंत संभावनाओं के द्वार, जबकि सुनहरा साथी है जीत का।
रंग नशा है, जो चढ़ जाता है। पानी भी है। कई बार उतर जाता है। हर रंग के अंदर कई रंग हैं। शायद इसीलिए दुनियाभर की भाषाओं के साहित्य उन रचनाओं से भरे पड़े हैं, जिनमें रंग और जीवन एक दिखाई देते हैं। रंग खुशियां भर देते हैं और सीख भी देते हैं। हर रंग अलग है, लेकिन जब वह मिलता है, तो इस तरह कि उसे फिर अलग नहीं किया जा सकता। दो रंग इस कदर एक-दूसरे में मिल जाते हैं कि फिर अपनी अलग पहचान छोड़ देते हैं। उस पल से उनकी एक नई पहचान होती है, नया नाम होता है। वे बताते हैं कि कुछ नया पाने के लिए कुछ पुराना खोना भी पड़ सकता है। लेकिन, बड़ाई इसमें है कि हम नया पाते हुए भी पुराने का सम्मान बनाए रखें। उसे अपने भीतर सहेज कर रखें। यूं की गई मेहनत रंग जरूर लाती है।
रंग सबके लिए एक है। उसमें किसी दूसरे रंग से कोई बैर नहीं होता। जिसके साथ कहिए, उसके साथ चला जाएगा और उससे मिलकर कोई नया रंग खिलाएगा। यह खुद को जाहिर करने का कोई न कोई रास्त ढूंढ ही लेते हैं। इन्हें दबाया नहीं जा सकता, छिपाया नहीं जा सकता। यह खिलखिलाते हैं, मुस्कुराते हैं।
होली वह मौका है, जब इन रंगों के जरिये जीवन में खिलखिलाहट को बढ़ाया जा सकता है। रंगों के सारे रंगों को अपनाया जा सकता है। होली के रंग हमें बोलना सिखाते हैं, खामोशी से बाहर लाते हैं। इनसे मिलने वाली खुशी अपने में पूरी होती है। उसमें किसी और मिलावट की जरूरत नहीं। वैसे देखा जाए तो खुशियों का भी अपना रंग होता है। फिर भी कुछ बातें याद रखने वाली हैं, कि रंग बदल-बदल कर इस्तेमाल करना अच्छा है, लेकिन खुद रंग बदलना नहीं। रंग को धुल देना अच्छा है, रंग का उतर जाना नहीं।
तो इस होली पर रंगों से दूर जाने का बहाना न तलाशिए, क्योंकि फिर आप खुशियों से दूर जा रहे होंगे। इन्हें खुद के पास आने दीजिए। इनमें फन है आपके जीवन में रंग जमाने का।
सौजन्य से : नवभारत टाइम्स