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DevBhoomi Insider Desk
• Fri, 22 Sep 2023 11:22 am IST


एक नाटक, जिसने बड़े नवाब को ऐक्टर बना दिया


स्वर्ग में इंद्र की सभा में नृत्य करने वाली एक परी धरती के एक राजकुमार को दिल दे बैठी, तो उसके बगैर उसे स्वर्ग के सारे सुख फीके लगने लगे। राजकुमार के बगैर जब एक पल गुजार पाना भी दूभर हो गया तो अपनी बेचैनी दूर करने का कोई और रास्ता न देख उसने एक दिन एक बड़ा जोखिम उठाया। सबकी नजरें बचाकर वह राजकुमार को अपने साथ स्वर्ग ले गई। हालांकि वह जानती थी कि एक न एक दिन भेद खुल जाएगा और जब भी खुलेगा, उसे देवराज इंद्र का भीषण कोप झेलना पड़ेगा।

एक दिन सचमुच ऐसा ही हुआ। भेद खुल गया, तो स्वर्ग के कर्मचारी न्याय के लिए राजकुमार के साथ उसे इंद्र के समक्ष ले गए। इंद्र ने सारे प्रकरण को गंभीरतापूर्वक सुना और दोनों को स्वर्ग से निकालकर धरती पर भेजने का दंड दे दिया! लेकिन यह दंड परी को दंड ही नहीं लगा। वह तो उसे तब लगता जब इंद्र सिर्फ राजकुमार को स्वर्ग से निकालते और उसे स्वर्ग में उसका बिछोह सहने-तड़पने को अभिशप्त किए रखते। उन्होंने ऐसा नहीं किया तो परी को लगा कि आखिरकार उसकी मोहब्बत जीत गई है। वैसे भी उसका स्वर्ग उसके राजकुमार की गोद में ही था!

अवध दरबार से बावस्ता रहे उर्दू के प्रतिष्ठित लेखक और कवि आगाहसन ‘अमानत’ के बेहद लोकप्रिय काव्य-नाटक ‘इंदर सभा’ की कहानी कुल मिलाकर इतनी ही है। यह नाटक स्वर्ग में स्थित महाराज इंद्र के दरबार की पृष्ठभूमि पर आधारित था। इसे उर्दू का पहला नाटक माना जाता है, जिसकी पहली मंचीय प्रस्तुति 1853 में हुई। 1932 में मदन थियेटर ने उसके आधार पर ‘इंद्रसभा’ नाम की फिल्म भी बनाई। इंद्रसभा से पहले देश में एकमात्र बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ ही रिलीज हुई थी। ‘इंद्रसभा’ कुल मिलाकर 211 मिनट लंबी फिल्म थी, जिसमें एक-दो या आठ-दस नहीं, पूरे 71 गाने थे। यह अब तक का वर्ल्ड रेकॉर्ड है। वैसे इंदरसभा नाटक में भी 31 गजलें, 9 ठुमरियां, 4 होलियां, 15 गीत, 2 चौबोले और 5 छंद शामिल हैं। जानकार बताते हैं कि जब भी उसका मंचन होता था, उसमें चार चांद लगाने के लिए उसके गीतों, गजलों, ठुमरियों और होलियों वगैरह की बिना पर कई नृत्य प्रस्तुत किए जाते थे। इस सबके चलते ‘अमानत’ की यह कृति फिल्म और नाटक- दोनों रूपों में भरपूर प्रशंसाएं बटोर चुकी है।

इतिहासकार अब्दुल हलीम ‘शरर’ की मानें तो हिंदुओं और मुसलमानों की इल्मी और तहजीबी रुचियों के आपसी मेल-जोल की इस नाटक से बेहतर यादगार हो ही नहीं सकती। लेकिन इस पर अश्लीलता और भौंडेपन के भी आरोप कुछ कम नहीं लगे। भारतेंदु हरिश्चंद्र को तो यह नाटक इतना नापसंद था कि उन्होंने इसका मजाक उड़ाने के लिए ‘बंदर सभा’ नाम से उसकी पैरोडी लिख मारी थी। पैरोडी के आरंभ में लिखा था, ‘इंदरसभा उर्दू में एक प्रकार का नाटक या नाटकाभास है और यह बंदरसभा उसका भी आभास है।’

बहरहाल, आज की तारीख में जब इसका देशी-विदेशी कई भाषाओं में अनुवाद हो चुका है, जानकार इसको लेकर एकमत नहीं हैं कि ‘अमानत’ ने यह नाटक अपनी मर्जी से लिखा या नवाब वाजिद अली शाह की दिलचस्पी के मद्देनजर उनके अनुरोध पर। लेकिन यह लगभग निर्विवाद है कि यह नाटक प्रकाशित होने से पहले ही चर्चा में आ गया था। प्रकाशन और मंचन का सिलसिला शुरू होने के बाद इसके कई गीत दो पीढ़ियों तक लोगों की जुबान पर चढ़े रहे थे। तब गीतकार और कलाकार अक्सर उसके गाने गाया करते थे।

कहते हैं कि वाजिद अली शाह को संस्कृतिकर्मी बनाने का श्रेय भी काफी कुछ इस नाटक को ही जाता है। सूबे की गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार इस अलबेले नवाब को हिंदुओं के वैदिक और पौराणिक देवमंडल के प्रतिनिधि इंद्र के नाम-काम से जुड़ा और मोहब्बत की जीत का उद‌्घोष करने वाला यह नाटक बेहद पसंद था। उन्होंने कैसरबाग की ऐतिहासिक सफेद बारादरी में इस नाटक के कई भव्य मंचन कराए थे। साथ ही, उनमें कभी राजकुमार तो कभी इंद्र की भूमिकाएं उन्होंने खुद और परियों की भूमिकाएं उनके बहुचर्चित ‘परीखाने’ में शाही खर्च पर नृत्य-संगीत और अभिनय का प्रशिक्षण लेने वाली बेगमों ने निभाई थीं।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स