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DevBhoomi Insider Desk
• Tue, 28 Dec 2021 5:44 pm IST


89 देशों में फैला ओमीक्रोन, बच्चों की सुरक्षा के लिए वैक्सीन पर जल्द लें फैसला


कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन ज्यादा संक्रामक है। कुछ देशों में दिख रहा है कि संक्रमण और बीमारी उभरने में अधिक समय लग रहा है। इसके संक्रमण की दर को देखते हुए अब भारत सरकार नाइट कर्फ्यू और कंटेनमेंट जोन के बारे में विचार कर रही है। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि इस पर वैक्सीन का क्या असर है, यह अभी तक साफ नहीं है।
अब तक ओमिक्रॉन 89 देशों में फैल चुका है। भारत में इस समय तक 200 से अधिक लोग इससे पीड़ित हो चुके हैं। सुनने में आ रहा है कि डेढ़ से 3 दिन में इसके केस दोगुने हो जाते हैं। भारत के राष्ट्रीय कोविड-19 टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. वीके पॉल के अनुसार यूरोप की ओमिक्रॉन लहर के अनुभवों के अनुसार देश में प्रतिदिन 14 लाख नए केस देखने को मिलेंगे। आईआईटी कानपुर का सूत्रा मॉडल बताता है कि इसका शिखर फरवरी के अंत तक देखने को मिलेगा, जिसकी रफ्तार एक लाख केस प्रतिदिन की होगी। वैसे सबसे खराब स्थिति जनवरी के अंत में ही देखने को मिल सकती है।

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बता दें कि ओमिक्रॉन के लक्षणों में अत्यधिक थकान, गले में खराश, शरीर और सिर में दर्द आदि हैं। लक्षण असामान्य और अधिकतर हल्के होते हैं, साथ ही इसमें शरीर में ऑक्सिजन की मात्रा भी कम नहीं होती है। न तो सांस में तकलीफ होती है, ना ही स्वाद या सूंघने की शक्ति जाती है। यह किसी खास आयु वर्ग तक सीमित नहीं है। यह भी देखने को मिला है कि इस वेरिएंट के म्यूटेशन मनुष्य के शरीर में बीमारी या वैक्सीन के कारण विकसित हुई रोग प्रतिरोधक क्षमता को बेअसर या कम कर देते हैं।

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अभी तक यही नहीं निश्चित है कि मौजूदा वैक्सीन ही इसके लिए काफी होगी या कोई दूसरी वैक्सीन तैयार करनी पड़ेगी। फिर ओमिक्रॉन के पचास तो म्यूटेशन हैं, जो कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से दोगुने हैं। आरटी पीसीआर या रैपिड एंटिजन टेस्ट में कोरोना का तो पता चल जाता है, मगर ओमिक्रॉन का नहीं पता चलता। ऐसे में इसकी पहचान के लिए जीनोम सिक्वेंसिंग की जाती है। जेनेटिक मटेरियल की स्टडी करके पता लगाते हैं कि इसके अंदर किस प्रकार के बदलाव हुए है और यह पुराने कोरोना वायरस से कितना अलग है।

लंदन के इंपीरियल कॉलेज की स्टडी बताती है कि यह वेरिएंट वैक्सीन के असर को भी काफी हद तक प्रभावित करता है। विभिन्न वैक्सीनों का इस पर प्रभाव क्या है, यह अभी शोध का विषय है। दरअसल वैक्सीन या पहले हो चुका संक्रमण शरीर में टी-सैल पैदा करते हैं, जो हमारा गंभीर बीमारी से बचाव करते हैं। बूस्टर वैक्सीन इसे और आगे बढ़ाती है। इंपीरियल कॉलेज के अनुसार भारत जैसे देश, जहां पहले भी काफी लोग संक्रमित हो चुके हैं, वहां आम लोगों विशेष रूप से बुर्जगों और भारी जोखिम वाली बीमारियों से ग्रस्त लोगों में बूस्टर डोज का अच्छा असर हो सकता है।

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माना जा रहा है कि यह वेरिएंट बच्चों को ज्यादा प्रभावित कर सकता है। ऐसे में बच्चों की वैक्सीन के बारे में भारत को जल्द निर्णय लेना होगा, क्योंकि यहां अभी तक 18 साल से कम उम्र के लोगों को टीके नहीं लगाए जा रहे हैं। इसके अलावा बुर्जुगों और कोर्मोबिडिटी यानी गंभीर बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बूस्टर डोज के बारे में भी हमारे वैज्ञानिकों को जल्द से जल्द निर्णय लेना होगा, नहीं तो इसके गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय और कोविड-19 की वैक्सिनेशन कराने वाली स्पेशलिस्ट कमेटी के लोग स्थानीय बूस्टर टेस्ट के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं, जिसके आधार पर बूस्टर की नैशनल पॉलिसी बनाई जाएगी। लेकिन जब तक यह नहीं है, तब तब वैश्विक डेटा को ही अपना मार्गदर्शक बनाना चाहिए, जो कि नहीं हो रहा है।

फिर भी ओमिक्रॉन से बहुत डरने की जरूरत नहीं है। बचने के लिए जरूरी है कि लोग कोविड गाइडलाइंस का पालन करें। भीड़-भाड़ से बचें, मास्क यूज करें, हाथ धोते रहें। यह ना सोचें कि वैक्सीन तो इस पर असर नहीं करेगी तो नहीं लगवानी। कहीं कम तो कहीं ज्यादा, वैक्सीन इस पर असरकारक तो है ही।
सौजन्य से - नवभारत टाइम्स