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• Tue, 30 Mar 2021 2:18 pm IST


व्यंग्यः बरसे चुनावी रंग, भीगे मतदाता रसिया


अबकी होली का अंदाज ही कुछ अलग है। क्योंकि मौसम चुनावों का है। लोग चाहते हैं कि खेला होबे इसलिए खूब खेलिए और खुल कर खेलिए। खेला करने के लिए खेल, खिलाड़ी और मैदान सभी तैयार हैं। चुनावी पिचकारी तो रंग बरसाने के लिए कब से बेताब है। लोग भींगने के लिए भी तैयार हैं। फागुन मलंग और मस्ती का महीना है। पूरा देश भांग छानकर होलियाना मूड में है। बस खेला करने की तैयारी है। मुफत में सब कुछ मिल रहा है, मतदाताओं जितना भर सको भरो। आब्जर्बर अब राह के रहबर हो चले हैं आप खूब डुबो, जितना की डूब सको। तुम पर लैला, मजनू और नूरी सब कुछ कुर्बान है, क्योंकि तुम लोकतंत्र की प्राण हो, लेकिन एक ठर्रे पर निहाल हो। अपुन के नेताजी का रंग निराला है, वह राजनीति में आला है। क्योंकि बंग में पिए भंग, नेताजी अड़बंग, खेलै चुनावी होली का हुड़दंग।
हे ! लोकतंत्र के देवताओं सुनो, चुनावी होली फिर सालों बाद आएगी। नेताजी और उनकी पार्टी होलियाना मूड में हैं। तुम्हें सबकुछ लुटाना चाहते हैं, क्योंकि चुनावी इश्क का बुखार ही ऐसा होता है। तुम्हें लुटना है तो लूट लो, तेरा तुझको सबकुछ अर्पण…। इस मौसम में सारा जहाँ तुम्हें लुटाना चाहते हैं। तुम्हारी ख़ुशी के लिए वह कुर्बान होना चाहते हैं। लेकिन चुनावों बाद पांच साल तुम्हें उनके लिए सबकुछ लुटाना होगा।
देखो। सितारे भी जमींन पर टपक पड़े हैं। वह भी हाथों में चुनावी पिचकारी लिए बैठे हैं। अबकी गालों को उन्होंने खुल्ले छोड़ रखा है। कोई भी समर्थक उनके गालों पर बासंती गुलाल अपने हाथों से मल सकता है। सितारे चुनावी होली में किसी को नाराज नहीं करना चाहते हैं। क्योंकि आपका गुलाल उनका सितारा चमकाएगा। लेकिन मुआ कोरोना अपनी साल गिरह मनाने को बेताब है। फिलहाल चुनावी इलाके में अभी उसका प्रवेश निषेध है। चुनाव आयोग ने अभी वहां कोरोना के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। जिसकी वजह से चुनावी इलाके में चुनावी पिचकारी का होली के लिए बेधड़क इस्तेमाल किया जा सकता है।
मुंबई से देवरजी पैदल चल कर गांव में भौजाई के साथ दूसरी होली खेलाने का इंतजार कर रहें हैं, लेकिन मुआ कोरोना इस बार भी भौजी के गालों पर गुलाल नहीं मलने देगा। कोरोना अपनी साल गिरह मनाने को बेताब है। उधर लवगुरु होली के बहाने अपने लव-जेहाद की मुराद पूरी नहीँ कर पाएंगे। बलम रसिया तो हिंदुस्तानी पिचकारी से काम चलाएंगे। क्योंकि मुलुक में मुए कोरोना ने चीनी पिचकारी पर बैन लगवा दिया है। बेचारी गुझिया भी उदास है। उसने भी हड़ताल कर दिया है। उसने कहा है कि मुझको हाथ न लगाओ नहीँ तो कलमुँहा कोरोना मेरी भी जान पर बन आएगा। हाँ, लेकिन चुनावी इलाके में मैं भांग पीकर नाचूंगी।
दूसरी होली पर भी लव गुरुओं के मुंगेरी सपने आँसूओं में बह गए। वह होली पर गले नहीं मिल पांएगे। क्योंकि कोरोना ने उनके हाथों में गुलाल की जगह सैनिटाइजर और मास्क पकड़ा दिया है। गले मिलाना तो दूर चेहरा भी नहीं देख पांएगे। क्योंकि होली लॉकडाउन में रहेगी। होली बेचारों का लव सेंसेक्स बढ़ाने का मुख्य साधन और समाधान है। जिसकी तैयारी महीनों से चलती है। प्रेमिका कि होली को हाईप्रोफ़ाइल बनाने में लवगुरु कोई कसर नहीं छोड़ते। महीनों से लिस्ट तैयार की जाती है। होली कैसे विश करेंगे, इसका भी तरीका अजूबा और ग्लोबल होता है। लेकिन दो सालों से पुरी पिलानिंग पर पानी फिर जा रहा है।
दुनिया में चाइनीज माल की दीवानी थीं जिसकी वजह से उसने मुफ्त में कोरोना भी भेंट कर दिया। बगैर कस्टम ड्यूटी और जीएसटी के। अपने देश में तो कोरोना ने होली का होला बना दिया है और भाँग का गोला खिला दिया है। होली को हमजोली बना कमरे बंद कर दिया। लेकिन कुछ भी हो अपन की चुनावी होली अबकी दमदार रहेगी। वहाँ तो कोरोना भी पानी भरता दिखता है। चलो, भौजाई के गालों पर गुलाल नही मल पाएंगे तो क्या हुआ रंगभरे गुब्बारे गुलेल पर चढ़ा कर मारेंगे। क्योंकि चुनावी मौसम में गुलेल अच्छा काम करती है। वैसे भी आजकल गुलेल कारगर तरीका है।
मुंबई से होली पर गांव आए देवरजी की मायूसी भौजाई से देखी नहीँ गई। वह बोल उठी ! लल्ला काहे परेशानन हो। गालों पर गुलाल नहीँ मल पाओगे तो क्या हुआ। गुलेल तो चला सकते हो। अरे भाई! छत और गुलेल तुम्हारी। रंग और रंगबाजी भी तुम्हारी। बस गुब्बारे में रंग गुलाल भरो और गुलेल पर चढ़ा गुब्बारा बम मारो लल्ला। देखते नहीं आजकल नेताजी की चुनावी पिचकारी से खूब रंग बरस रहें हैं। वोटर खूब भींग रहा है, चुनावी घोषणाओं के रंग में मतदाता खूब डुबकी लगा रहा है। देवर जी, यही तो खेला होबे और कछु नाहीं होबे…।
देखिए, देवर जी चुनावी भाँग पीकर राजनेता और मतदाता मस्त है, फिर आप काहे कोरोना की फिकर करते हैं। कवि, साहित्यकार, व्यंगकार और सरकारों पर चुनावी होली का चटक रंग चढ़ा है। आप भी कोरोना को मारो गोली और चढ़ाओ गुलेल, बरसाओ रंग। भगाओ कोरोना। बुरा न मानो होली है, मुँह से निकली बातें फागुन और कबीरा की बोली हैं। आज बिरज में चुनावी होली है रसिया, हम सब हमजोली हैं रसिया।