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• Thu, 25 Mar 2021 6:09 pm IST


भारत-श्रीलंका के बीच सुधरेंगे द्वीपक्षीय संबंध


श्रीलंका से अपने संबंधों को सुधारने के लिए मोदी सरकार ने एक कूटनीतिक चाल चली है। अब उसकी यह नीति पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को लेकर एक मजबूत आधार देगी और भारत के साथ भरोसे को और मजबूत करेगी। श्रीलंका सरकार और भारतीय मूल के तमिल समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष का इतिहास बहुत पुराना है। श्रीलंकाई और तमिलों के बीच हिंसा में अब तक कई हजार तमिलों की मौत हुई है। इस संघर्ष काफी संख्या में श्रीलंकाई नागरिक भी मारे गए जा चुके हैं। श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकार को लेकर संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जेनेवा में श्रीलंका के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया।
जिस पर दुनिया के 22 देशों ने समर्थन में मतदान किया। जबकि भारत समेत 14 देश तटस्थ रहे। चीन और पाकिस्तान समेत 11 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।

भारत सरकार की इस नीति से तमिलों में नाराजगी हो सकती है। क्योंकि यह श्रीलंका में बसे तमिलहितों के खिलाफ है। लेकिन कभी-कभी अपने हितों को भी किनारे रखना सरकार की मजबूरी होती है। मानवाधिकार प्रस्ताव पर भारत ने जो नीति अपनाई उसे गलत नहीं कहा जा सकता है। सरकार ने भविष्य को देखते हुए चीन और पाकिस्तान को मात दिया है। हालांकि दूसरे राजनीतिक दलों ने सरकार की इस नीति पर तल्ख टिप्पणी की भी है, डीएम के नेता स्टैलिन प्रस्ताव के पक्ष में मतदान चाहते थे लेकिन सरकार की अपनी नीति है।

श्रीलंका सरकार और तमिलों के अधिकारों को लेकर एक लंबा संघर्ष चला है। श्रीलंका यात्रा के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी पर तमिल अधिकारों और सरकार की नीतियों को लेकर उन पर हमला भी हुआ था। यह हमला उस समय हुआ था जब वह गार्ड आफ आनर ले रहे थे। भारत के हाथ वैश्विक समझौते से बंधे हुए हैं जिसकी वजह से उसे अपने हितों की भी अनदेखी करनी पड़ती है। श्रीलंका में मानवाधिकार की बहस बेहद पुराना मसला है। हाल में तमिल समुदाय के मानवाधिकार हितों को लेकर श्रीलंका सरकार के खिलाफ संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव लाया गया। जिसमें भारत ने तटस्थ नीति अपनाई और वह वोटिंग से गैरहाजिर रहा।

श्रीलंका से अपने संबंधों को सुधारने के लिए मोदी सरकार ने एक कूटनीतिक चाल चली है। अब उसकी यह नीति पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को लेकर एक मजबूत आधार देगी और भारत के साथ भरोसे को और मजबूत करेगी। श्रीलंका सरकार और भारतीय मूल के तमिल समुदाय के बीच हिंसक संघर्ष का इतिहास बहुत पुराना है। श्रीलंकाई और तमिलों के बीच हिंसा में अब तक कई हजार तमिलों की मौत हुई है। इस संघर्ष काफी संख्या में श्रीलंकाई नागरिक भी मारे गए जा चुके हैं। श्रीलंका में तमिलों के मानवाधिकार को लेकर संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद ने जेनेवा में श्रीलंका के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया।
जिस पर दुनिया के 22 देशों ने समर्थन में मतदान किया। जबकि भारत समेत 14 देश तटस्थ रहे। चीन और पाकिस्तान समेत 11 देशों ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया।

भारत सरकार की इस नीति से तमिलों में नाराजगी हो सकती है। क्योंकि यह श्रीलंका में बसे तमिलहितों के खिलाफ है। लेकिन कभी-कभी अपने हितों को भी किनारे रखना सरकार की मजबूरी होती है। मानवाधिकार प्रस्ताव पर भारत ने जो नीति अपनाई उसे गलत नहीं कहा जा सकता है। सरकार ने भविष्य को देखते हुए चीन और पाकिस्तान को मात दिया है। हालांकि दूसरे राजनीतिक दलों ने सरकार की इस नीति पर तल्ख टिप्पणी की भी है, डीएम के नेता स्टैलिन प्रस्ताव के पक्ष में मतदान चाहते थे लेकिन सरकार की अपनी नीति है।

श्रीलंका सरकार और तमिलों के अधिकारों को लेकर एक लंबा संघर्ष चला है। श्रीलंका यात्रा के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री रहे राजीव गांधी पर तमिल अधिकारों और सरकार की नीतियों को लेकर उन पर हमला भी हुआ था। यह हमला उस समय हुआ था जब वह गार्ड आफ आनर ले रहे थे। भारत के हाथ वैश्विक समझौते से बंधे हुए हैं जिसकी वजह से उसे अपने हितों की भी अनदेखी करनी पड़ती है। श्रीलंका में मानवाधिकार की बहस बेहद पुराना मसला है। हाल में तमिल समुदाय के मानवाधिकार हितों को लेकर श्रीलंका सरकार के खिलाफ संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार परिषद में एक प्रस्ताव लाया गया। जिसमें भारत ने तटस्थ नीति अपनाई और वह वोटिंग से गैरहाजिर रहा।


लेखकः प्रभुनाथ शुक्ल