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• Fri, 15 Mar 2024 3:30 pm IST


लिबरल हैं लड़कियां, दक्षिणपंथ की हो रहा लड़कों का रुझान, जानें क्या हैं मायने


Gender gap पर आजकल काफी चर्चा होती है, लेकिन Alice Evans इस पर नए ढंग से रोशनी डाल रही हैं। अमेरिका की स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में विजिटिंग फेलो Alice दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में Gender attitude पर पिछले कई वर्षों से काम कर रही हैं। उनका कहना है कि GenZ (यानी 2000 से 2010 के बीच पैदा हुई पीढ़ी) की लड़कियां और लड़के अपनी सोच में एक जैसे नहीं हैं। जहां लड़कियां ज्यादा लिबरल हो रही हैं, वहीं लड़कों का रुझान दक्षिणपंथी सोच की ओर बढ़ रहा है। Alice के मुताबिक लड़कियों की स्वतंत्र सोच और उनकी आत्मनिर्भरता लड़कों में कहीं न कहीं असुरक्षा का भाव बढ़ा रही है।

उदाहरण के लिए, यूरोप में जहां वेतन कम हैं और जॉब टेंपरेरी, लड़के परेशान हैं कि वे मनचाही हैसियत हासिल नहीं कर पा रहे। उन्हें लगता है कि प्रवासी और लड़कियां उनके हिस्से की नौकरियों पर कब्जा करके उनकी मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। लड़कियों का संगठित रूप में सामने आना लड़कों की दुश्चिंताओं में इजाफा करता है। ये दुश्चिंताएं अक्सर अजीब और कभी-कभी खतरनाक रूप में सामने आती हैं। स्पेन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में मी टू मूवमेंट का ऐसा असर देखा गया।

स्पेन में मी टू रैली के बाद अति दक्षिणपंथी पार्टी को पुरुषों के वोट में बढ़ोतरी देखी गई। दक्षिण कोरिया में भी मी टू मूवमेंट मजबूती से उभरा जिसने पुरुषों की खीझ बढ़ाई। वहां पब्लिक बाथरूम इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की चोरी-छुपे फिल्म बनाकर उसे महिला के पर्सनल डीटेल्स के साथ ऑनलाइन सर्कुलेट करने का ट्रेंड आम है।

भारत की बात करें तो उत्तर के मुकाबले दक्षिणी राज्यों में महिलाओं का घरों से निकल कर काम करना आम है। लेकिन वहां भी मर्द शादी में अपना कंट्रोल बनाए रखना बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं। Alice के मुताबिक वहां इसकी झलक Gender violence के बढ़े हुए आंकड़ों में दिखती है। बहरहाल, ये प्रवृत्तियां जहां चिंता जगाती हैं वहीं यह भी बताती हैं कि लड़कियों का आगे बढ़कर यथास्थिति को चुनौती देना निरर्थक नहीं है। यह प्रतिक्रिया पैदा कर रहा है। अभी भले यह प्रतिक्रिया नेगेटिव हो, पर चुनौती के साथ संवाद की भी प्रक्रिया चलती रही तो आगे चलकर इसके पॉजिटिव मोड़ लेने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

सौजन्य से : नवभारत टाइम्स